अर्जी
अर्जी
1 min
200
जाना है तो जाओ
पर इक अर्जी मेरी सुन जाना
बुझते दीये में थोड़ा थोड़ा
खुद को मिला जाना
ज़ख्म बहुत है दिये इस जहां ने
इक हंसी देकर रूह तलक हंसा जाना
खिल न सका वन-फूल जो नेह बिन
इक लबों का छुअन देकर
इक पत्थर को अहिल्या बना जाना
न मैं अंगार न मैं पानी
मेरी तासीर ही कुछ अलग है