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अरे जाने दो छोड़ो भी

अरे जाने दो छोड़ो भी

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ऐसे मुस्कुराना छोड़ो भी

अब यूँ शरमाना छोड़ो भी


रूप-रंग है चार-दिनों का

इसपे इतराना छोड़ो भी


मान लिया तुम अच्छे हो

गाल बजाना छोड़ो भी


रिश्तों का कोई मोल नहीं

लाख खज़ाना छोड़ो भी


आ जाओ कभी छत पे तुम

अब हमको सताना छोड़ो भी


होंठो से भी कभी पिला दो

आँखों से पिलाना छोड़ो भी


हम तो तेरे अपने ही ठहरे

नज़रें झुकाना छोड़ो भी


या इज़हार फिर करो हमारा

या प्यार जताना छोड़ो भी


डरते काहे हमसे हो इतना

अब भय खाना छोड़ो भी



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