अपनी राह खुद चुन लूँगा
अपनी राह खुद चुन लूँगा
कुछ बात है किसी अनजान के साथ
होने की,
जान पहचान होकर भी अनजान
रहने की,
समय यूँ बीत जाता है उन के साथ,
फिर भी बात होती है अनजान रिश्ते
में जान होने की।
कई अजनबी मिले है इस सफर में,
जान पहचान भी हुई,
दूर तक साथ चलने की बात थी,
कुछ कदम चलते ही सांस टूट गई ।
इस दुनिया में सबसे बड़ा अजनबी
तो मैं हूँ,
जो खुद से ही अनजान है,
कहता तो है की सब जानता है,
पर जानता नहीं आगे क्या अंजाम है ।
कुछ वक़्त बिता लेता हूँ खुद के साथ,
यही सोचते सोचते,
अगर चाय की चुस्कियों में ज़िन्दगी
निकल जाए,
तो क्या ही बात है ।
अकेलापन अब काटता नहीं,
पक्का साथी जो है,
आखिर ये दिल अब रोता नहीं,
कहानी अभी बाकी जो है,
खुद से प्यार करता हूँ इतना
काफी है,
ज़िन्दगी अभी अधूरी है,
पूरी जिनी अभी बाकी जो है।
अधूरी तो कई चीज़े हैं,
पूरी करने का लालच जो है,
इस जाने संसार में,
में अजनबी ही सही,
अपना अस्तित्व बनाने का
जज़्बा अभी बाकी जो है।
कोई बात नई अगर हूँ अनजान,
कभी जान पहचान कर लूँगा,
देखने दो दुनिया को मेरा सफर,
एक के बाद एक अपनी राह
खुद चुन लूँगा।