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Lokanath Rath

Abstract

3  

Lokanath Rath

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अपनी हिन्दी......

अपनी हिन्दी......

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ऊपर आसमान और नीचे जमीन

   मेरे प्यारे तुम हों हसीन,

इसमें इतनी गुमान नकर

   बस बाकी है सिर्फ चार दिन.


वो आसमान तो है, रहेगा

   ये जमीन उसे देखती रहेगी

पर तेरा रूप, शरीर ना रहेगा

   ना कोई तुझे फिर ढूंढेगा.


इतने ऊँची उड़ान ना भर

   गिर जायेगा इस जमीन पर,

तब सताएगा फिर ये डर

   पहेले तू सबकी कदर कर.


ये आसमान भी है तेरा

    ये जमीन भी है तेरी,

ये जिन्दगी भी है तेरी

   समझन कियूँ करता है देरी?


अपना देश, अपनी भाषा देख

   अपनी संस्कृति से कुछ सीख,

अपनी कहानी अपनी भाषा मे लिख

   अपनी हिन्दी को प्यार करना सीख.


जितने भी कोई शूरवीर आये

   अपनी हिन्दी ख़तम नहीं करपाए,

कोशिश तो उन्होंने बहुत की

   अपनी हिन्दी के आगे झुक गये.


अब अपनी हिन्दी से प्यार कर

   इसकी तू जय जयकार कर,

इसके लाखो चाहनेवाले हैं दुनिया भर में

   अपनी हिन्दी बोलने से ना डर.


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