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ca. Ratan Kumar Agarwala

Abstract Others

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Abstract Others

अपने बारे में सोच जरा

अपने बारे में सोच जरा

2 mins
267


औरों के लिए सब करते करते, खुद को मैंने भूला दिया,

सपने देखे थे मैंने कई, पर सारे सपनों को सुला दिया।

झाँकता हूँ जब अतीत की ओर, खुद पर गुस्सा आता है,

खुद के बारे में सोचने को मेरा, मन बहुत अब करता है।

 

यह जिन्दगी न मिलेगी दोबारा, क्यूँ न इसे जी लें जरा?

क्यूँ भूला देते हो खुद को सदा, अपने बारे में सोच जरा।

खेलो, कूदो, मस्ती मनाओ, यारों संग घूमने भी जाओ,

और मन न करे कुछ करने को, कुछ पल खुद संग बिताओ।

 

सजो, संवरो, हँसो, मुसकुराओ, सपनों को परवान चढ़ाओ,

जिन्दगी की घुटन को छोड़, अच्छे भावों में मन लगाओ।

भूल कर तन की बीमारियों को, मन की बीमारियां भगाओ,

राह खुद की तय करो तुम, अपनी मंजिल खुद ही पाओ।

 

नहीं कहता हूँ कि कभी तुम औरों के काम ही न आओ,

पर चाहता हूँ कि कभी खुद को भी तुम भूल न जाओ।

जिन्दगी की जद्दोजहद में, कुछ वक़्त हो अपने लिए,

बिना किसी दबाव के आओ, कुछ पल अपने लिए जीयें।

 

निकल गये जिन्दगी के तीन पड़ाव, अंतिम पड़ाव है बाकी,

खुद की शर्तों पर जी लें जरा, न हो किसी की टोकाटाकी।

राह अपनी हम खुद चुन लें, मंजिल खुद ही तय कर लें,

जिन्दगी के इस सफर में, सुकून के दो पल खुद को दें।

 

कभी कभी सोचता हूँ मैं, अपनों के लिए बहुत कुछ किया,

मन में आता एक खयाल, अपनों के लिए मैं खूब जीया।

इसी तरह जीते जीते, खुद के लिए जीना मैं भूल गया,

औरों से मिलते मिलाते, खुद संग मिलना मैं भूल गया।

 

थोड़ा सा वक़्त बचा है अब, मन के द्वार पर हुई दस्तक,

क्यूँ नहीं सुनी वक़्त की ध्वनि, यही आज दिल में कसक।

वक़्त ने आगाह किया था मुझे, जीने का दिया था मशवरा,

“वक़्त किसी के लिया रुकता नहीं”, गूँज रहा यही मुहावरा।


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