अपना मानकर तुमको.....
अपना मानकर तुमको.....


अपना मानकर तुमको बैठे थे हम
पर धोखे तुम देने में माहिर थे,
मीठी मीठी बाते कर के वक्त अपना
तुम गुजार रहे थे दगाबाज़ थे तुम,
हम तुम वफ़ा की मूरत समझकर
राज़ अपने बयाँ करते थे तुमसे,
नहीं थी खबर हमको कि तुम एक चेहरे पर
कई चेहरे लगाए हुए थे,
जिंदगी के सफर पर चलते चलते तुमने
बहुत धोखे दिए कि दिल टूट गया,
अब तो भरोसा उठ गया दोस्ती के नाम पर से
दोस्तों की महफ़िलों पर से
तुम तो दोस्ती के नाम का वो कलंक बन गए कि
एतबार इस शब्द पर नहीं रहा,
काश हम तुम मिले ना होते तो अच्छा होता
झूठे तेरे वादों से हम परेशान ना होते,
अपना समझना किसी को इस दौर में
गलत ही होगा हर कोई स्वार्थी यहाँ पर,
हर किसी को अपना स्वार्थ ही नजर आए
किसी के जज्बातों की कोई कद्र नहीं रही,
किसी को अपना बनाने से अच्छा है कि
तन्हा तन्हा ही रह कर जिंदगी गुजार ले,
कम से कम कोई अफसोस तो ना होगा
अपनी तनहाइयों से खुशी खुशी दोस्ती कर लेंगे तो......