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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"अपना दुख"

"अपना दुख"

1 min
265


अपना दुःख और अपनी तकलीफ़
बाकी किसी से भी नही कोई पीर


दूजो के दुःख से न बहते कभी नीर
अपने गम से ही आदमी बहाता नीर

पीरपराई जाननेवाले खत्म हुए,वीर
सबको जहां में चाहिए अपनी ही हीर

जो दूसरों को तकलीफ़ में देते सहारा
खुदा कभी नही करता,उसे बेसहारा

छोड़ो करना मेरा दुःख,मेरी तकलीफ़
परहित मे भी बहा दिया करो,कभी नीर

अपने से ज्यादा कई,दुःखी यहां शरीर
जग मे सबको जकड़े,हुए दुःख जंजीर

किसी को कम,किसी को थोड़ा ज्यादा
सबको जरूर है,कुछ न कुछ तकलीफ

दूजो की थाली में देखना,छोड़ो घी क्षीर
जो अपने न,सब के दुःख में हो,गंभीर

उसकी बना देता,रब बिगड़ी तकदीर
जो मुसीबत में सबको देता है,मदद चीर

मेरा छोड़ो,सर्व दुःख में खुद को जोड़ो
चलाते रहो,परोपकारिता के तुम तीर

उस जीवन का मिटा जाता है,तिमिर
जो परहित के लिये जलाता है,दीप

जब यह सुख,खुशी ही न रुके फिर,
गम की क्या रुकी रहेगी,यह समीर?

कर्म करो,निःस्वार्थ कर्म करो,वीर
जग ढीढ पत्थरों से निकाल दो,नीर

कर्म की यह रस्सी,बनेगी जंजीर
पत्थरों पर कर देगी,निशां गंभीर

लगातार चलते रहो,चलते रहो,वीर
कैसे न मिलेगी मंजिल की लकीर?

दिल से विजय


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