अपना धुन अपनी मंजिल
अपना धुन अपनी मंजिल
हमें नहीं आता
कुछ छुपाना,
ह्रदय के तंत्र को
झकझोर
एक नयी रौशनी
को जन्म देता हूँ !
यदा- कदा कल्पना के तारों
को भी बुन लेता हूँ !
व्यथा ,दुःख दर्द के
जब तीरों से
कोई प्रहार करता हैं,
उसे कुंडल कवच से
रोक लेता हूँ !
ख़ुशी के पल को
हम कभी जाने नहीं देते
उसे मिलकर मनाता हूँ !
मुझे यह गम नहीं,
है कौन मेरे साथ ?
कौन मेरा हम सफ़र हैं ?
कौन मेरे खास हैं ?
कभी कभी
अपनी मंजिल की ओर
खुद चल देता हूँ,
रास्ता खुद बनाता हूँ।