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Rajesh Raghuwanshi

Abstract

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Rajesh Raghuwanshi

Abstract

अंतर समझ नहीं आता है।

अंतर समझ नहीं आता है।

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थामता उँगलियों को मेरी 

वह मुझे अपने होने का

अहसास दिला जाता है।


बेटी के न होने का गम 

वह अपनी उपस्थिति से दूर हटाता है।


अन्तर तो संस्कारों का है केवल,

वरना बेटा भी बेटी से 

कम नहीं कहलाता है।


अपने नन्हें हाथों से माँ के सिर पर "बाम' मलता 

वह माँ के पैरों में नेलपॉलिश भी लगा देता है।

उसके झुमकों से भरी थैली को अपना 

खिलौना बना घंटों बिता देता है।


खाना बनाते समय अक्सर बैठ पास वह

स्वाद बढ़ाने के हर गुर सीख-समझ जाता है।


कैसे कहूँ फिर-

बेटों को बेटियों से कुछ कम आता है?


हर बार I love you कहकर

दिल को सुकूँ दे जाता है।

घर नाना-नानी के रहते हुए भी

Miss you कहकर याद अपनी दिला जाता है।


हीरे की तरह चमक अपनी

जीवन में बिखरा जाता है।


दिल का टुकड़ा वह मेरे

दिल को अक्सर छू जाता है।

अंतर तब बेटा-बेटी का

समझ मुझे नहीं आता है।


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