अंनत प्रेम
अंनत प्रेम
जब भी हम प्रेम की बात करते हैं
एक नायक और एक नायिका का
दृश्य मन में बन जाता है।
प्रेम केवल दो विपरीत
परिस्थितियों का मेल नहीं।
यह तो स्वतन्त्र हैं,
प्रेम तो किसी से भी हो सकता है।
प्रेम आपकी वाणी में हो सकता है
प्रेम परिवार के प्रति हो सकता है।
प्रेम किसी की मासूमियत से हो सकता
तो प्रेम संसार की अदभुत
क्रीड़ा से भी हो सकता है।
प्रेम तो उस बेजुबान
जानवर से हो सकता है।
प्रेम इस प्रकृति से भी हो सकता है
प्रेम किसी का ओचित्य नही हैं प्रिय,
प्रेम तुझको मुझसे और मुझको
तुझसे भी हो सकता है।