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Janvi Choudhury

Tragedy Inspirational

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Janvi Choudhury

Tragedy Inspirational

अनकही कहानी - एक भूरी नारी।

अनकही कहानी - एक भूरी नारी।

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बचपन हमने देखा बड़ी मुश्किल से है,

कोई लड़की हुई है सुन के दफना देता है,

कोई लड़की हुई है सुन के जीते जी मार देता है।


बचपन से जब बाल्यावस्था आए,

कोई लड़की बाल मज़दूर का काम कर रही है,

तो कोई सड़क पर झोली फैलाये एक पैसे के लिए तरस रही है।


बाल्यावस्था से यौवनावस्था जब आए,

तो देखा पढ़ने के ज़माने में छोटी बच्ची किसी का घर संभाल रही है,

कहीं वर्तन धो रही है तो कहीं कोई रास्ते पर धक्के खा रहीं है।


यौवनावस्था से प्रजनन आयु जब आए,

जब मासिक धर्म शुरू होता है उसका दर्द जैसे प्रेग्नेंट के दर्द सा होता है,

कोई रंग रूप को देखते हैं तो कोई आपके जीबन में अपनी नाक घुसाते हैं।

कहीं समाज ताना कस्ते हैं और आज कल के ज़माने में कहीं बहार जाने का डर रहता है,

कहीं ससुराल मारते हैं तो कहीं कोई समझता नहीं है।


प्रजनन आयु के बाद जब प्रेगनेंसी अवस्था में आए,

प्रेग्नेंट अवस्था में एक इंसान के अंदर एक नन्ही सी जान बस्ती है,

उस बीच का दर्द जो है 9 महीने का और उसके बाद प्रेगनेंसी के

वक़्त जो दर्द मानो की 206 हड्डियां टूट रही हो, जैसे लगता है।


प्रेगनेंसी के बाद जब माँ बन जाते है,

तब अपने लिए कुछ नहीं मगर सब परिवार और बच्चों के लिए केवल करती है।

इसलिए माँ के शब्द में संसार बस्ता है।


जब वही माँ बूढ़ी हो जाती है,

तो बच्चे धक्के खाने के लिए कहीं सड़क पर छोड़ देते हैं,

या तो वृद्धाश्रम में छोड़ जाते है,

कोई अनादर करता है कोई जुर्म करता है।


मरने के अवस्था में आयु जब आए,

तब न पूछने वाले भी दिखावा कर जाते हैं,

मरने के बाद जो बेटे पूछते नहीं वही सिर्फ़ 4 कंधा देने आ जाते हैं।


जीवन एक स्त्री की न कभी सरल थी न कभी है,

ज़माना है बुराइयों और अत्याचारों का,

यहाँ एक बेटी को अच्छे से बड़ा करना भी बहुत कठिन है।



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