अंदर मेरे ये कैसा शोर है
अंदर मेरे ये कैसा शोर है
अंदर मेरे ये कैसा शोर है,
ए मन मेरे तू जा रहा किस ओर है,
दिल और दिमाग में छिड़ा हुआ है एक द्वंद,
रोशनी दिखाई नहीं देती अँधकार यहाँ घनघोर है।।
दिल से लिया जो फैसला,
दिमाग ने सदैव ही विरोध किया,
दिल जिसे स्वीकार करे उसे क्यों आजमाएं,
पर यहाँ तो आजमाइशों का मेला लगा हर ओर है।।
जिसे अपनी दुनिया मानी,
नाम जिसके कर दी ये जिंदगानी,
उसी ने दिल के फैसले को गलत ठहराया,
जीत गया दिमाग यहाँ उंगली उठा रहा मेरी ओर है।।
दिल, दिमाग के फैसले में,
सुना था जीत सदा दिल की होती है,
पर बेवफ़ाई ने तो क़रार दिया इसे भी झूठा,
हार गया दिल यहाँ अब अंदर बस ज़ख्मों का शोर है।।
किस दिशा,किस ओर जाऊँ,
इस टूटे दिल का हाल मैं किसे सुनाऊँ,
जिसे तकदीर मानकर किया जिंदगी में शामिल,
वही तकदीर तो यहाँ मेरी तकदीर का बन बैठा चोर है।।
जिसके लिए अपनों को छोड़ा,
उसी ने दिल तोड़ कर कहीं का न छोड़ा,
अपनी ही राहों में बनाकर रख दिया है अजनबी,
हर पल जंग लग रहा खुद से अंदर सन्नाटों का शोर है।।