अंधेरा सब जगह पसरा हैं
अंधेरा सब जगह पसरा हैं
एक अंधेरा यहां भी पसरा हैं
एक अंधेरा वहां भी पसरा हैं
इन अंधेरों से ही तुमको
इस बार पार निकलना हैं,
एक अंधेरा वहां भी पसरा हैं !
किसको बोलोगे पथ दिखलाने को,
जो खुद से हारे बैठे हैं !
किसको बोलोगे सूरज बनने को,
जो खुद से प्रकाश खोए हैं !
एक अंधेरा वहां भी पसरा हैं !
कितना भी तुम चीखों- चिल्लाओ
अपनों को तुम पास बुलाओ
कौन आएगा ? किसको फिक्र है तेरी ?
जहां पुकारोगे वहां ही देखोगे,
घनघोर अंधेरा पसरा है !
जीवन जीने की कला सिखाने वाले ही,
जहां-तहां चमगादड़-सा,
अंधेरी गुफा में बैठे हैं !
एक अंधेरा वहां भी पसरा हैं !
शासक-प्रशासक तुम्हें बचाएंगे !
या फिर संसद के सांसद सब ?
इस आशा में बैठे हो कि न्याय मिलेगा ?
अंधेरा पसरा जीवन में सूरज खिलेगा ?
अच्छा है फिर यही सोच कर बैठ जाओ !
तुम लोगों सा और भी ऐसे ही सोचते थे,
आंखों में उम्मीदें संग,
उस अंधेरे में ही सब खो गए !
जहां बैठकर तुम सब,
ये सोच रहे हो !
एक अंधेरा वहां भी पसरा हैं !
मत सोचो कि कोई आएगा
तुम्हें अंधेरे से निकालेगा
अच्छा होगा कि हाथ-पैर मारो तुम
कहीं कुछ उम्मीद मिल जाए
कहीं कोई मशाल जल जाए
उम्मीदें क्यों बांधे बैठे उनसे तुम ?
एक अंधेरा वहां भी पसरा हैं।