अमर बेल
अमर बेल
ख्वाबों के खंडहर में
अभी भी हरी है छोटी सी
उम्मीदों की अमर बेल
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ
यत्र - तत्र - सर्वत्र
उल्टे लटके पड़े हैं
चाहतों के जिद्दी चमगादड़
उनको उम्मीद है
चमत्कारी बरगद के उगने का
जिसमे विभिन्न प्रकार के प्राणी
अपना आसरा बनाएँगे
कौआ और हिरण, बगुला और सर्प भी
रात्रि विश्राम कर पाएंगे
केकड़ा और लोमड़ी की
नहीं गलेगी पुरानी दाल
उम्मीद की डोर का क्या
पतली सही, मगर लंबी होनी चाहिए
तलाशने के लिए
नया क्षितिज, नया फलक ।।