अम्मा अपना पता बता दो।।।
अम्मा अपना पता बता दो।।।
अस्सी की हो गई हैं अम्मा ,
फिर भी इक पल चैन नहीं ।
हाथ कँपत हैं, कमर दुखत है
दो डग चल के फिर ठाँड़ी
को कर दे है काम हमारो
यही सोच तो है भारी
गुड्डी बोली ..
अन्जू और माया तो हैं न
फिर काहे को रिसयानी
कछु काम की नैंया बे दो
खड़ी रहत हैं मों बाये
उनकी छोड़ो तुम तो सुन लो
नल आ गये हैं पानी भर लो।
बड़े भोर की उठ बैठी हो ,
जरा घाम में तुम तप लो।
अरे सुनो तो कहाँ चलीं तुम
पीले फूलों की रजाई जा
बड़े जतन से बनवाई है
घरया के पेटी में धर दो।।
गुड्डी, सुनो जरा रुकियो तो
कमरा अबै पुरौ धरौ है
बिस्तर कहाँ झड़ा पाए ?
दरवज्जे लों धूप चढ़ आई
खिचड़ लों ने बन पाई।
गुड्डी, सुनो जरा रुकियो तो
अबै तो जे भगवान धरे हैं
हमाये जी खों जे पड़े हैं
कछु तो बारो भोग लगा दो
हम को तो सौ काम डरे हैं ।
काय खड़ी रह गई रिसिया के
जाने कब मुँद जैहें आँखी
एक ठूँठ के हम हैं पाखी
उड़ जै हैं तुम पता ना पा हो
फिर को पै रिसिया हो।।
अम्माँ आसपास अब कहीं नहीं हो
सपने में तो झलक दिखा दो
बिलख बिलख कर ढूँढ रही हूँ
अम्मा अपना पता बता दो ।।
