अमिट छाप
अमिट छाप


तुम्हारी स्मृति की
अमिट छाप
बहुत गहरे अंकित है
मानस पटल पर मेरे
जो घनी अनजानी
धुंध को चीरती हुई
मेरे मन की सतह तक
दस्तक दे जाती है
और सब कुछ ऐसे साफ
प्रकाशित हो जाता है
जैसे पूर्णिमा का चाँद अपनी
चांदनी बिखेर रहा हो
जब मैं उस प्रकाश को
अपने अंदर समेटती हूं
तो तेरा साया मेरे भीतर
मुस्कराता है।