अलविदा
अलविदा
कहाँ भाती है अब मुझे
दुन्यवी रंगीनियाँ
अनमनी रहती है
दिल के अंजुमन की रानाइयां
मन करता है चलो अब
दूरी बना ली जाए तुम्हारी हर याद से
ऐसे ही किसी रोज
मैं कह दूं अलविदा तुम्हें
तुम्हारे साथ-साथ
इस मायावी दुनिया को भी
बरबस छोड़ जाऊं
अपनी डायरी के कुछ पन्ने
जिन पर उतारा है मैंने
तुम्हारे प्रति अनन्त प्रेम को
ऐसे ही किसी रोज मेरी स्मृति में
जब पत्रिकाओं में छपी होंगी
मेरी लिखी कविताएँ
उस कविताओं में होगा जिक्र तुम्हारा
तब अनायास ही याद आ जाऊंगी
मैं तुम्हें
यकीनन प्रेमिकाएं बहुत रही होंगी
तुम्हारी
पर मेरी तरह तुम्हारे लिये
प्रेम कविताएं किसी ने नहीं लिखी होगी..