अलफाज लिखूँ
अलफाज लिखूँ
वो चाहते है मैं उनके लिए अल्फाज़ लिखूं,
समझ ही नहीं आ रहा झूठ लिखूं या इत्तु-सा अपने मन का हाल लिखूं..
मेरे मन का मौसम बेशक पतझड़-सा हैं,
सोच रही हूँ मगर..
अपने बंजर-ए-ज़मीन की गलियों में बहार-ए-मौसम का आगाज लिखूं..
बीत तो रही है अमावस्या से चॉंद सी जिंदगी,
मैं उनके होने से हौले -हौले पूर्णिमा के चॉंद की चॉंदनी बनूं..
मेरे मन में चल रहे अल्फाज़ों में जान बाकी ही कहां बची है-(
शायद उनको मैं अपने अल्फाज़ों की रुह-सा लिखूं..
समझ ही नहीं आ रहा मैं क्या लिखूं,
कुछ झूठ लिखूं या अपने मन का इत्तु-सा हाल लिखूं