अल्हड़ अलमस्त बेपरवाह बचपन
अल्हड़ अलमस्त बेपरवाह बचपन
अल्हड़ अलमस्त अठखेलियां करता बचपन हमारा,
मासूम हरकतें, अनजान, बेपरवाह खिलंदड़ खिलाड़ी,
छोटे छोटे हाथ-पैर, नन्हा सा इक दिल
दबे पांव माॅ॑ की ऑ॑खों पर धरे कलाइयां,
कौन हूॅ॑ मैं, कौन हूॅ॑ मैं,बताओ-बताओ ना।
भोला बालपन,आहट पैरों की ना करें
और आवाज़ से अपनी सबकुछ बता जाए।
बलिहारी बचपन पर, मासूमियत पर,
कुदरत भी बच्चा बन जाए संग हमारे तब।
बरसात में जमकर भीगता बचपन,
गर्मी में तपकर सोना बन निखरता बचपन,
सर्दी की सर्द हवाओं में चिलगोजे खाता,
जेबों में हाथ डाले घूमता बचपन।
परीक्षा में पढ़ता लिखता बचपन,
माॅ॑ से लाड़ लड़ाकर जीतता बचपन,
पिता के क्लांत होंठों पर मुस्कान लाता बचपन,
दादी-नानी की अनसुनी कहानियों का श्रोता बचपन,
बाबा-नाना का दुलारा बचपन,
चाचा-मामा-ताऊ-मौसी-बुआ के
ऑ॑ख का तारा ,आंगन में डोलता बचपन,
रात में माॅ॑ की गोद में निश्चिंतता से सोता बचपन,
याद सुहानी, मुस्कान खिला जाए अधरों पर बचपन !