अलग-अलग
अलग-अलग
बेवज़ह तंग करना
उसकी आदत में शुमार है
जब कहता हूँ भूल जा
तब वो कहता है
प्यार है
जब प्यार की ओर
मैं अपने क़दम बढ़ाता हूँ
फिर हँसने लगता है
और कहता अभी भी इंतज़ार है ?
नश्तर सी चुभती दिल में उसकी बातें
लबों पर फिर भी मुस्कान ही रहती है
आज तक नहीं जान सका
क्यों एक ऐसे शख़्स के लिए
ज़िन्दगी परेशान सी रहती है
जो हमारी परवाह नहीं करता
हमे प्यार नहीं करता
हम पर ऐतबार नहीं करता
और एक हम है सबके ख़िलाफ़ जाकर
खुद के ख़िलाफ़ जाकर
उसे खुश देखना चाहते है
कुछ तो बात है उसमें
जो इतना कुछ होने पर भी
दिल उसे याद करता है
दुआओं में उसकी ही मांग करता है
बहुत करीब से देखता हूँ तो पाता हूँ
उसका ऐसा होना ही मेरे लिए खास है
क्योंकि उसमे जो भी है जैसा भी है
वास्तविक है बनावटी नहीं है
वो दर्द तो देता है
मग़र झूठी हमदर्दी नहीं देता
वो रूठता भी है तो
दिखावटी मनाता नहीं
वो जैसा है सही है
मैं उसकी ख़ुशी में
उसके लिए खुश हूँ
अब ये ज़रूरी तो नहीं
हम जिसे चाहे
वो भी हमे चाहे
हम जिसके लिए फिक्रमन्द हो
वो भी हमारे लिए हो
हम दोनों को अपने अपने काम में
मशगूल रहना चाहिए
अगर हमारी कोशिशों में वज़न है
तो राहे खुद बी खुद हमे एक कर देगी
वरना तो एक साथ होकर भी
अलग अलग चल ही रहे है हम....