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Shailaja Bhattad

Others

5.0  

Shailaja Bhattad

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अक्स

अक्स

1 min
77


थमी थमी सी जिंदगी ,

थम-थम कर बहती रही।

कभी इस करवट तो कभी

उस करवट,

करवटों में ही सिमटती रही।

रुके रुके से कदम,

रुक रुक कर बढ़ते रहे।

पवन से मिलने का जज्बा ,

रुक रुक कर जगाते रहे।

सपनों के खिलने का इंतजार

करते रहे।


कभी भोले मन को समझाते,

तो कभी सहलाते रहे।

एक पल जीए तो,

दूसरे पल खोते रहे।

कभी तिरगी में रहे तो ,

कभी प्रकाश ढूंढते रहे।

बस जिंदगी से हर वक्त

जूझते ही रहे।

कभी खुद के ही अक्स

से भागते तो ,

कभी अक्स को तलाशते रहे। 

अब तो यह एहसास ही नहीं कि,

कितनी तकलीफ़ में रहे।


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