अजनबी चाहत
अजनबी चाहत
कई दफा उन्होंने हमें कत्ल-ए-आम कर दिया,
हमने उस अजनबी को नज़रअंदाज़ कर दिया।
नज़रों की आरज़ू थी उनसे आँखें चार करे,
शायद वो भरी महफ़िल में मेरा दिदार करे।
उनका आना जाना था हमारे अंजुमन में,
यही मिलने का ठिकाना था हमारे दामन में
आए नहीं जो सोमवार को रविवार कर दिया।
एक रोज़ नज़रे उनकी हमसे टकराई थी,
दिल में मेरे जैसे कोई कहर ढाई थी।
बस वो बातें दिल की बयान कर रहे थे,
हम उनकी शानो-शौकत में ढल रहे थे।
मानो जिंदगी किसी के नाम कर दिया।
मुलाकात में हमने हाल ए दिल पूछ लिया,
झुकी निगाहों में असलियत से बोल दिया।
उन्हें तो नज़रों से खेलना मज़ाक लगता था,
हमे तो उनका मिलना इत्तेफ़ाक लगता था।
दिल के टुकड़े कर वो निकल गए,
और उस पल से वाकई हम बदल गए।