अजीब सा माहौल
अजीब सा माहौल
आज अजीब सा माहौल हो रहा है
खुद की आवाज से शोर हो रहा है
हम बाहर से भले सही दिखते हैं
पर भीतर घनघोर अंधेरा हो रहा है
सबको बस खुद की चिंता लगी है,
पड़ोस में चाहे कोई भूखा सो रहा है
आज अजीब सा माहौल हो रहा है
अंधी आंखों से रोशन जग हो रहा है
कितना स्तर गिर चुका है,लोगो का,
ख़ुद के लहूं ने दामन पकड़ा गैरों का
दूसरे रिश्तों को छोड़ो भूल ही जाओ,
खून-रिश्तों ने छोड़ा साहिल दरिया का
आज सबका ही सीधापन खो रहा है
आज अजीब सा माहौल हो रहा है
पर दुनिया के इस अजीब माहौल में,
वो ही दीप बनकर जगमग हो रहा है
जिसका मन साखी निश्छल हो रहा है
वो इस माहौल में चिकना घड़ा हो रहा है
लाख बार क्या कोटि बार डराये तम,
वो अमावस में पूनम चाँद हो रहा है।
