अजब कैसा पैसा?
अजब कैसा पैसा?
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प्रभु जी इस जगत में,
है अजब कैसा पैसा?
कम हो या ज्यादा,
बहुत सताता है पैसा।
कमी सताती है इसकी,
जरूरत नहीं होती पूरी।
मन अति खिन्न होता है,
देख अभाव की मजबूरी।
अधिकता होने पर भी,
बड़ी मुश्किल है लगती।
किसी को दें या न दें तो,
संबंधों में है दुश्मनी बनती।
प्रभु मुझ पर इतनी कृपा,
सदा ही बनाए रखना।
मिले तब चरणों की भक्ति,
शेष सब जगत तो है सपना।