ऐसा क्या लिख दूँ
ऐसा क्या लिख दूँ
सोचती हूँ लिख दूँ अपने सारे एहसास पन्नों के सीने पर लिख दूँ..
जो कह न पाई तुम्हें रुबरु चिट्ठी के ज़रिए वो सारी मुलाकात लिख दूँ।
सहज लूँ तुम्हारी सारी अदाएं अपने तसव्वुर में और नखशिख तुम्हारी हर बात लिख दूँ..
मौन स्पंदन को मुखर करके दिल के सारे अरमान लिख दूँ।
लिखना है बहुत कुछ पर थोड़े में ज़्यादा लिख दूँ चंद शब्दों में ढूंढ लेना तुम मेरी आसमान सी विराट प्रीत..
तुम्हारे प्रति प्रेम की आज चलो चरम लिख दूँ।
पंक्तियों में पाओ जहाँ इश्क शब्द का उपयोग मुस्कुरा देना वहाँ सोचकर मेरा लज्जा भरा स्मित..
दिल करता है मेरी मोह जगाती तृष्णा लिख दूँ।
दिन का उद्वेग और रातों की तिश्नगी लिख दूँ खाओ कसम तड़पोगे नहीं..
छूकर शब्दों को सहला देना चलो मेरी चाहत की इन्तेहाँ लिख दूँ।
ऐसा क्या लिख दूँ हमदह की तुम पढ़कर दौड़े चले आओ..
बेकल करते तड़पाती तुम्हारी यादों की चलो कशिश लिख दूँ।
महज़ चिट्ठी न समझना, समझना मेरे दर्द की ख़लिश लिखकर भेजी है..
एक बिरहन के मन की तड़प समझना आज बस तुमसे जुड़े अनुराग की बारिश लिख दूँ।