अहंकार
अहंकार




अहंकार एक आग है सब कुछ कर दे ख़ाक
पहले मति हारती मतिमंद करती पाप दिखे
धर्म जस धर्म दिखे जस पाप।
सत्य असत्य में फर्क मिटे अहंकार के संग
ज्ञान अज्ञान का अंतर हो जाता अंत
सत्य, निष्ठा, नेकी, धोखा और
फरेब अहंकार के शास्त्र शत्र।
अहंकार एक विष है अंतर मन में जन्म
अहंकार इंसान के गुण, कर्म, धर्म ज्ञान,
विज्ञान का कर देती सब भष्म।
आँखों सहित आदमी अँधा विवेक का विवेक हीन
नियत, निति, को हर कर देती निर्मूल
मुर्दा जलता आग में जिन्दा
अहंकार की आग के शोला और शूल।
अहंकार की आग में जल
वर्तमान हो जाता स्वाहा
वर्तमान कि कालिख स्याह
भविष्य के अन्धकार कर काला काल।
अहंकार एक व्याधि है संन्यपात कहलात
अपने दुःख का दर्द
नहीं औरन के सुख से
घुटत जलत मरी जात।
दुःख का कारण अहंकार ही
बिष वासुकि मागत त्राहि त्राहि
अहंकार एक विष है
निगलत खुद को जात।
घृणा क्रोध की जननी अहंकार द्वेष
दम्भ दो धार।
निज को काटत जाय मगर
मकच्छ कि खाल सा अहंकार बन जात।
अहंकार एक शत्रु है
खुद को दीमक अस खाय।
वैद्य धन्वन्तरि और
सुखेन को सूझत नही उपाय।
निर्मम ,निर्दयी दया भाव भी नाही
प्यासे को पानी नहीं मरत जहाँ रेगीस्तान।
धर्म कहत अग्नि है चार छुधाग्नि, कामाग्नि,
जठराग्नि, चिताग्नि पांचवी आग है अहंकार।
चारो पर भारी घातक पता
नहीं मानव कब कैसे जल जाय।
अहंकार का नाश ही शक्ति का सूर्योदय
विनम्रता सयम धैर्य का धन्य दरोहर।
मानव मानवता का सत्य यही सत्यार्थ
दम्भ, द्वेष, घृणा का नाश प्रेम, दया, छमा,
सेवा का युग का होता निर्माण।
साहस, सौर्य ,त्याग तपश्या और
बलिदान के मूल्य मूल्यों की मानवता का
बनता दृढ़ ,सुदृढ़, राष्ट्र समाज।