अद्भुत् सहस्ररश्मि
अद्भुत् सहस्ररश्मि
चम्पा तरु के पत्तों के बीच से,
नीम वृक्ष की डालियों के बीच से,
आसमान की पूर्व दिशा से,
सहस्रकिरण रश्मियाँ आईं।
पल्लव बीच अनगिनत किरणें,
किरणें ही किरणें सब ओर,
सहस्र रश्मि नाम सार्थक करतीं,
दृश्य मनोरम प्रस्तुत करतीं।
सूर्य की रश्मियाँ दूर से चलकर,
मेरे दृष्टिपटल पर आ रहीं
भोर के मृदु अरुण आलोक में,
सब कुछ प्रकाशमय बना रहीं।
यह समय कितना सुहाना,
प्रार्थनामय सहज ही बन रहा
पत्तों से टकराकर सब ओर
रश्मियाँ बिखरकर फैल गईं।
मेरे मन में यह पावन पल,
दिव्य भावों की सृष्टि कर रहा,
उष्म कोमल रश्मियाँ का यह
नर्तन भाव मुग्ध बना रहा।