अभ्यास
अभ्यास
मैंने बचपन से खुद को मजबूत रखने का
अभ्यास शुरू किया,
हर छोटी बातों पर मुस्कुराना सीखा,
बेवजह की बातों को नजरअंदाज किया,
और दर्द को अपने अंदर छिपाना सीखा,
ताकि जमाने को बता सकूँ कि खुश रहने के लिए
किसी की जरूरत नही,
अपने अंदर ही खुशी होती,जिसे महसूस करना होता।
मैंने कोशिश की कभी किसी के दर्द की वजह न बनूँ,
हरसंभव किसी के जरूरत में काम आ सकूँ,
बाँट सकूँ गम किसी का,
और चेहरे पर मुस्कान ला सकूँ।
पर मुझे क्या पता था कि इतने पर भी
कुछ लोग मिल ही जायेंगे।
जो गाहे बगाहे दर्द दे ही जायेंगे।
जताएंगे आपकी कमियों को
और बतायेंगे तुम नही हो फिट इस समाज में,
जहाँ बाह्य सुंदरता ही महत्वपूर्ण है।
जहाँ ईश्वर की हर कृति को नही मिलता
यथोचित सम्मान,
आदर और प्यार।
जहाँ धैर्य, संयम ,साहस कोरी आदर्शवादिता मानी जाती ।
फिर भी मन में आस पलती रही,
कि शायद किसी दिन सब बेहतर होगा।