अभी न छोड़ो
अभी न छोड़ो
मेरी कमसीन कमर की लचीली धरा पर तुम्हारी
ऊँगलियों के निशां जादू जगाते कहता है..
कल रात की कुंतल छाँह आग भर गई अंग-अंग..
पल्लू के उपर उठते ही शोर करते नाभि की मुस्कान देखो
खिलखिलाते कह गई वो रात मेरी थी उस ऊँगली का शृंगार मेरा था..
अधरों ने तुम्हें जो दिया था अधिकार
तुम्हारे अधरों से टपके शहद में नहाते फिरोज़ी हो गई..
प्रीत को प्रतिध्वनि देते मेरी काया देखो तुम्हारी भुजाओं में खिली..
उन घड़ीयों से बरसा अमृतकण मेरी मांग को रक्तिम कर गया..
पा गई मैं पुष्प अब खुशबु ढूँढती हूँ
तुम नभ मेरे, मैं धरा ठहरी शिथिल पड़ी साँसों में रवानी ढूँढती हूँ..
हौले हौले सीने से सरक रही मतवाले पल्लू की गड़ी दर गड़ी कह रही,
अंचल पट के हर तार में पिया की खुशबू भर गई..
अभी न छोड़ो मदहोशी के मंज़र में पड़ी गति हृदय की कह रही
सहला दो लट और थोड़ी देर..
मेरी काया तुम्हारी आगोश में ऐसे घिरी जैसे संध्या दिन की बाँहों में पड़ी..