अब जाएँ कहाँ
अब जाएँ कहाँ
बेगाने हो गए अब ख़्वाब सारे
बेगानी हुई अपनों की गलियाँ
ना मंजिल है, ना कोई ठहराव
उलझा है मन, अब जाएँ कहाँ
हर ओर से विरक्त जीवन मेरा
ढूँढे हर लम्हा बिछड़ा वो जहाँ
जिसकी छाँव तले मुस्कुराकर
इतराया करती थी वो खुशियाँ
विस्मित हूँ देख ऐसी किस्मत
कैसी ये इम्तहान की घड़ियाँ
दोराहे पे आकर खड़ी ज़िंदगी
ढूँढ रही वजूद की निशानियाँ
छोड़ रही है साथ प्रतिरूप भी
शोर मचा रही मेरी तनहाइयाँ
एतबार न रहा अब खुद पे भी
सही न जाए अब ये उदासियाँ।