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Kishan Negi

Tragedy

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Kishan Negi

Tragedy

अब और नहीं

अब और नहीं

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देखी न कभी उषा की प्रथम किरण

क्योंकि आँखें बंद थी 

कोयल की कूक कानों में मिश्री न घोले 

क्योंकि कानों के पट बंद थे 

डाली पर बैठी गौरैया को कौन पुकारे 

क्योंकि जुबां भी बंद थी

अस्मत जब हुई तार-तार जब नारी की 

तो क्यों समाज अंधा हुआ 

चीख पुकार उस अबला कि कौन सुने 

क्या उस पल ज़माना भी बहरा था 

कौन उस अभागिन की आवाज बने 

उसके लिए कानून भी गुंगा था

खून से लथपथ पड़ा था वह राह में 

हर गुजरने वाले ने आँखें बंद कर ली 

घायल कोई पुकार रहा था मदद को 

हर राहगीर ने कानों में ऊँगली डाल ली 

आखें गवाह हैं भूख पर हुए जुर्म की 

मगर होठों पर खौफ का ताला पड़ा था

अत्याचार मत देखो 

खुली आँखों से करो विरोध उसका 

सुनो मत निंदा किसीकी 

मगर सुनकर पुकार उसकी मदद करो 

कटु वचन भी न बोलो कभी 

मगर जुबाँ से आवाज बनो लाचार की।



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