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मिली साहा

Abstract

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मिली साहा

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आया वसंत

आया वसंत

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ईश्वर ने इस प्रकृति को कई रंगों से सजाया है,

प्रकृति को देने एक नया रूप देखो बसंत आया है,

सजी-धजी है दुल्हन की धरती अद्भुत सौंदर्य खिला है,

ऋतुराज बसंत से धरा को अनुपम सौंदर्य उपहार मिला है।


नवपल्लव, नवकुसुम से सजकर झूम रही है धरती,

पीली चादर ओढ़े प्रकृति धरा संग अठखेलियां करती,

हरियाली बिखरी चहुं ओर कृषकों के मन में खुशियां छाई,

नई उमंगों और खुशियों की सौगात देकर बसंत ऋतु आई।


आसमान में छाया है आज अद्भुत सौंदर्य रंगों का,

कितना मधुर और मनोरम दृश्य है रंग बिरंगी पतंगों का,

सरसों के पीले फूलों की महक बसी धरा के कण-कण में,

प्रकृति के संगीत का मधुर सा मीठा रस घुला सबके मन में।


मन में भरकर उल्लास बसंतोत्सव मना रहा संसार,

इसी उल्लास का प्रतीक है रंगों से भरा होली का त्यौहार,

चारों ओर फैली खुशहाली मानो खुल गया रंगों का भंडार,

बसंत ऋतु करता सबके मन में एक नई आशा का संचार।



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