आत्मनिर्भर नारी
आत्मनिर्भर नारी
घर पनघट पर,
जब सब औरतें,
मिल कर थी,
बतियाती,
तंग हुई हालत को,
वो फिर
अपनी जुबान,
बताती।
फिर पति के
बटुए के
सब किस्से
मिल सुनाती।
नज़र जो ढूंढा,
करती थी,
बटुए में,
सब उस पर
नजर लगाती।
अब ये किस्से
हुए पुराने
आधुनिकता के
इस युग में यारों,
आत्मनिर्भर है,
आज की नारी
न डर है कोई भारी,
खुद मेहनत से
आगे बढ़ती
स्वाभिमान से
वो जीती हैं,
कितने भी
दुख के संकट हो
अभय रहना वो
सीखी हैं।