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Brijlala Rohan

Abstract Romance Classics

4.3  

Brijlala Rohan

Abstract Romance Classics

आसमां तुम रोज चली आना

आसमां तुम रोज चली आना

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आसमां तुम रोज चली आना,

अपने दिल में छिपे राज को

जरा हमें भी तो बतलाना,

आसमां तुम रोज चली आना !


कैसे जीएं अब तेरे बिन

जरा इस पागल दिल को तो समझाना !

मेरे बाँहों में चाहकर भी आ नहीं सकती तुम !

एहसास बनकर ही सही मुझसे गले लग जाना।


आसमां तुम रोज चली आना।

पलभर के लिए ही सही अपने सीने पे सिर रखकर

मुझे सुकून की नींद सुलाना ! 

दिनभर का थका - हारा आऊँ

जब तेरे पास अपनी प्रेम की

थपकी से मेरा सारा थकान मिटा देना।

आसमां तुम रोज चली आना !


अपनी नटखट अदाओं से निंदिया मेरी चुराना,

अपनी शरारती अंदाज से मेरे दिल को तुम बहलाना,

अपनी मधुर मुस्कान से मेरी बगिया में खुशी के गीत गुनगुनाना,

आसमां तुम रोज चली आना !


अपनी यादों के पन्नों पे रोज एक कहानी बुन जाना,

मुसाफिरों की तरह अपनी मंज़िल पाकर

इक दिन मेरे करीब ही रूक जाना !

आसमां तुम इक बार आकर मेरे पास मुझमें ही समा जाना।

आसमां तुम जल्दी आना !

जान तुम जल्दी आना !


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