आशिकी रात
आशिकी रात
चंद पलो के लिए आँखें क्या झपकाई,
वो याद बन कर चुपके से गुजर गई।
मेरी आशिकी रात
बोल तुम्हें किस पहर बाँध के रखूं...
तुम आजकल चुपके से गुजरती हो।
पैरों को दबाए..मचलते हुए..
चंद्र बिंदु से निखरती हो।
अपनी काली चादर से चेहरा छुपा कर...
मेरे दिवाने दिल को तड़फा कर...
नयनों के पलक-पटल में...
मोहक रूप-सी बिखरती हो।
तुम चुपके से गुजरती हो।।
तुम सितमगर बनी हो बहुत ज्यादा....
मुझे सोने भी नहीं देती हो।
तेरे टूटते मोती को कैद करना चाहूं....
तुम पल भर में छुपा लेती हो।
हर सपना अधूरा रखती हो....
और अरमान सुलगा देती हो।
नहीं अब नहीं आना...मुझे तेरी बातों में..
"मुसाफिर" का मन हरती हो।
तुम चुपके से गुजरती हो।।