आश्चर्य
आश्चर्य
वास्तविकता तो यह है कि कोई भी किसी को किसी के लिए प्यार नहीं करता
बल्कि वह अपने को अपने लिए ही प्यार करता है l
होता यह भी है कि कभी-कभी किसी स्वार्थ और परमार्थ का नाम दे दिया जाता हैl
हकीकत का फसाना इतना है कि हर कोई जीव स्वार्थी ही होता है l
यह अलग बात है कि हर कोई समझ नहीं पाता l
यह कैसा रिश्ता यह कैसा नाता हैl
यह जगत में कौन किसे कितना क्या बतलाता है l
इस संसार में कौन किसको कब भरा जाता है यहां किसी पर प्यार निभाना आता
कुछ कहेंगे ही सुखी होने के लिए आसक्ति छोड़नी पड़ेगी l
और हमें फिर सुनने की आदत डालनी पड़ेगी
उनका काम तो कहना है हमें अपनी हर सोच अपने सांचे में ढालने पड़ेगी l
क्योंकि यहां हर कोई हर किसी दूसरे को सुनाता है
फिर भी अपनों से ज्यादा कोई किसी को नहीं बनाता
लिख देती हूं अपने भावों को इन मित्र रूपी पेजों पर पन्नों पर इसमें मेरा क्या जाता हैl
पढ़ लेना आप भी अनमने मन से चाहे आपका भी क्या जाता ह l