आशातीत
आशातीत
हाँ उससे मिल लौट रही थी मैं
अनकहे सवालो से घिरी थी मैं
क्या था क्यों था किसलिए था
जवाब तलाश कर रही थी उन तन्हाइयों में मैं
साथ थी उसके तो वो पास नही था
जब दूर हुई तो उसका पैग़ाम आया
आखिर कर क्या रही थी मैं
वो खुश था अपने दोस्तों से बात कर
और मैं बस उस कोने में बैठ उसे देख रही थी
बस उसके एक नज़र के लिए तरसती हुई
उसने मेरे साथ रह सारे काम किये सिवाए मुझसे बात करने के
और में कोशिश करती रही कि शायद वो एक लब्ज़ मेरे लिए भी कह दे
सवाल किया उससे तो कहता है अपने बारे में सवाल न किया कर
कश्मकश में अपनी मैं इंतेज़ार करती रही
खयाल तो वो भी आया कि छोड दूं सब और चली जाऊं उससे दूर
फिर न जाने क्यों उसके लिए ही रुक गई
लौट ते वक़्त बस उसे एक नज़र भर देखा
शायद इस उम्मीद में की वो एक लम्हा मुझे देख ले गले लगा ले
पर जिसने वो लम्हों में साथ होकर भी तन्हा रखा
वो और क्या ही करता
मुझे तो बस हमदर्द चाहिए था पर उसके साथ हो मेने शायद खुद को खो दिया
समान उठाया और अपनी मंज़िल के ओर चल पड़ी
एक सवाल जेहन में लिए क्यों उसने मुझे तन्हा कर दिया।