आशाएँ
आशाएँ
पलक पावडे़ बिछाकर
जो किया विश्वास पर इंतजार
समय की परतों पर मिटती रही वो हर दरार
बिरहन सी खोई रहती आशाओं से भरी रहती
आस में हो रही अखियांँ वह ज़ार-ज़ार
जो थी अहिल्या जो थी शबरी मीरा और राधा
जो अपने इष्ट के लिए जिया जीवन को आधा
फलीभूत हो उठा जब यह अनायास पल
बह उठी धारा फुहारों की बेहिसाब कल कल
बरसो पड़ी शिला तब्दील हुई नारी बन
कर श्रवण नवधा भक्ति अमर हुई प्राण ज्योति बन
अमरत्व प्राप्त किया विष पीकर श्याम वर्ण की जोगन बन
पटरानियो़ संग भले कृष्ण हुए रुकमणी के
पर राधे संग हुई कृष्ण की प्रीति प्रेयसी बन
अमर हुआ इतिहास पावन दिन स्वर्ण सुनहरा
लौटे राम अवध को हुआ संपन्न दिवाली और दशहरा
निष्फल हुआ नहीं आस आशाओं और बेज़ार का
है ये साक्ष्य कुदरती प्रमाण सदियों के इंतजार का।