आस लगाये बैठे हैं
आस लगाये बैठे हैं
महफ़िल में दिल की
तेरे दीदार का दिया
जलाये बैठे है...
कभी आना मेरी विरान
गलियो मे तो बताये के
तेरे दीदार को तरसे,
अपनी आँखों को
कितना तरसाये बैठे है.....
तुम जानते ही क्या हो
धडकनो की जंग को
रुह उल्झती है
तेरी आँखों से
हर पल सोचती तुझी को
हम बेजुबान लफ़्ज़ों से
ठोकर खाये बैठे हैं ...
कभी तोड़ भी दो
इस चुप्पी को
हम आस लगाये बैठें है,....
रो रो कर भर ली आहे
आसुंओं से प्यास
बुझाये बैठे है....
तेरे दीदार को तरसे
अपनी आँखों को कितना
तरसाये बैठें है....