आरजू ए जिंदगी
आरजू ए जिंदगी
जरा जरा खामोशी की निगहों मे आहट हैं
सुनी राह पर चल रही बेखौफ़ जिंदगी है
किस बात की चाह जी रही ये जान तू
जख्मी राह पर क्यों आरजू बिखर रही है ?
जरा जरा आरजू का पलकोतले बसेरा है
पलभर की खुशीका आंचल मे सवेरा हैं
किस बात की चाहत पलप रही साँस मे
कसक दिल की क्यों निगहों मे झलक रही है ?
जरा जरा जिंदगी का इन आँखो में नजरा है
सुनी पडी डगरपर सपनों का जो असर है
किस बात से झीझकर मुकर रही चाहते वो
जिंदगी सपनों से क्यों जुदाई माँग रही है ?
जरा जरा सपनों मे जिने यू जो बहाना है
आरजूओं मे एहसास का वही तराणा है
किस बात की कमी खल रही तमन्नओं में
काँटों भरी राह ही तो जिंदगी का ठिकाना है।