आओ हम घमंड भाव का परित्याग करे
आओ हम घमंड भाव का परित्याग करे
किस बात का घमंड किस बात का है भ्रम
एक ही मिट्टी से बने है हुए है तुम और हम
मिट्टी की ये काया जगत का मोह माया
एक दिन मिल जायेगा मिट्टी में ये काया
दया, क्षमा, परोपकार का भाव अपना लो
जो है दीन दुखी उनको गले लगा लो तुम
ना रहेगा पैसा, रुपया ना ही सुंदर रूप
जीवन के संघर्ष में कभी छाँव कभी धूप
त्यागो तुम अभिमान को सहज स्वीकार करो
भाव बैर और वैमनस्य को त्याग कर विनम्र व्यवहार करो
आओ हम सीखें सहज और सरल हो जाना
जो जैसा है उसे उसी रूप में अपनाना
बने विवेकानंद के जैसा बुद्ध सा हो जाये हम
मन निर्मल हो कर्म सुंदर बस प्रेम भाव अपनाएं हम
आओ हम घमंड भाव का परित्याग करें
नम्र वाणी, सरल व्यक्तित्व का निर्माण करें।