आओ गीत भोर के गायें
आओ गीत भोर के गायें
छोड़ प्रलय के राग पुराने, चलो सृजन के गान सुनायें ।
बैठ रात की इस चौखट पर, आओ गीत भोर के गायें ।।
किसने फूँकी सारी बस्ती, यह विचार का विषय नहीं है ।
कितने घर, दालान जल गए, चर्चाओं का समय नहीं है ।
इस विनाश के दामन में ही, नव निर्माण छुपा होता है...
विध्वंसों की राख उठाकर, चलो सृजन के खेत उगायें ।
बैठ रात की चौखट............।।
सूरज चाँद सितारों को भी, बदली आकर ढक लेती है ।
शक्तिमान को पल दो पल में, शक्तिहीन सा कर देती है ।
इसका अर्थ नहीं है उनका, तेज शून्य ही रह जाता है..
आओ हाथ बढ़ाकर अपने, हम बदली की परत हटायें...
बैठ रात की चौखट .....।।
समय मिला तो पृष्ठ पलटकर, पीड़ा का अनुवाद करेंगे ।
बीते कल का रुदन उठाकर, टूटे सपने याद करेंगे ।
किन्तु अभी तो समय नहीं है, हमको कुछ सपने गढ़ने हैं..
चलो समय की ईंटें चुनकर, हम भविष्य का महल बनायें...
बैठ रात की चौखट.............. ।।