आओ बसंत आओ
आओ बसंत आओ
कर सिंगार ऋतुराज बसंती
ज्यों धरती ने मांग सजाई
प्रियतम का चुंबन अधरों पर
शुभ सुमन लता मुस्काई,
अलसाई सी आंखों ने
उन्माद में जब पट खोले
महक अमराई बसंत की
मन गुलाल भर गई,
फिर फूली सरसों
भाव विभोर कर गई
पवन गति से फैली गंध
हर्ष उल्लास भर गई,
गौरी ने सरकाया घूंघट
गुंजन गुंजन हुआ पनघट
हाथों की मेहंदी की खुशबू
पिया को बेकल कर गई,
आज फिर सजा है गांव
धरती पर नहीं पड़ते पांव
बरसों बाद मेरे आंगन में
खुशियां आज बिखर गई,
प्रियतम की छवि मनोहर
नव पल्लव सा खिला है मन
बसंत ऋतु के बासंती रंग में
प्रेम रंग सी घुल गई।