आँखों का ये काजल
आँखों का ये काजल
डरता ही रहा मैं कैसे तेरी,
आँखों का ये काजल फैल गया।
बिजली सी आकर टकरा के गई,
होकर मैं पागल फैल गया ।।
हम दिन के उजालों में भटकें रहे,
उसको महर भी माह लगा।
चिलमन जो हटाई रुख़ से,
लब लरजते रहे घायल फैल गया।।
जो मैंने देखा आँखों से उसकी,
रात एक मोती बरसने लगा।
वो भींग गई बरसातों सी,
मझधारों में कायल फैल गया।।
फिर मैंने देखा चेहरे से उसके,
रंग झिझक का उड़ने लगा।
आसार थे बिजली गिरने के,
पहना के वो पायल फैल गया।
वो छोड़ गई बिखरा-बिखरा सा,
चाँद भी पानी में देखने लगा।
तामीर के रोशन चेहरे पर,
तखरीब का बादल फैल गया।
जुनून- ए-हुस्न को निगाहें यार ने,
आज लरज़ते देख लिया।
"नीतू" घटा सी जो बरसी,
नजरों से हो के ओझल फैल गया।