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Prerna Karn

Romance

5.0  

Prerna Karn

Romance

आँख मिचौली

आँख मिचौली

1 min
582


आँख मिचौली क्यों खेल रहे हो ?

मुझसे कुछ क्यों नहीं बोल रहे हो ?

अजीब-से रिश्ते में बाँध रहे हो !

लगता है राहों से मुझे भटका रहे हो ।


बच्ची-सी नादान थी मैं,

सबकी लाडली जान थी मैं,

ख़ुशियों की पहचान थी मैं,

परिवार की बढ़ती शान थी मैं ।


मिली जो तुमसे खो गया चैन,

ना दिन कटे ना ही कटती रैन,

लगता है मुझको हो गया प्रेम,

तुम ही बताओ कैसे होगा मेल ?


कैसे कहूँ मैं सबसे दिल की बात,

शर्म-हया मानो सब मेरे पास,

नज़रें उठती बड़ी हिम्मत से,

शर्म से फिर झुक जाती हैं ।


पलकें जो बंद होती तुम ही

नजर आ रहे हो,

है शाम जो ढ़लती दिल को

तरसा रहे हो,

सपनों में भी है तुम्हारा बसेरा,

लगता है जैसे कुछ रहा न मेरा ।


कहीं मोहब्बत एक तरफा तो नहीं,

वफ़ा ही मिले यह जरूरी तो नहीं,

फिर क्यों इतना तुम सता रहे हो ?

याद मुझे हर बार आ रहे हो ।


आँख मिचौली क्यों खेल रहे हो ?

मुझसे कुछ क्यों नहीं बोल रहे हो ?

अजीब-से रिश्ते में बाँध रहे हो !

लगता है राहों से मुझे भटका रहे हो ।


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