आँख मिचौली
आँख मिचौली
आँख मिचौली क्यों खेल रहे हो ?
मुझसे कुछ क्यों नहीं बोल रहे हो ?
अजीब-से रिश्ते में बाँध रहे हो !
लगता है राहों से मुझे भटका रहे हो ।
बच्ची-सी नादान थी मैं,
सबकी लाडली जान थी मैं,
ख़ुशियों की पहचान थी मैं,
परिवार की बढ़ती शान थी मैं ।
मिली जो तुमसे खो गया चैन,
ना दिन कटे ना ही कटती रैन,
लगता है मुझको हो गया प्रेम,
तुम ही बताओ कैसे होगा मेल ?
कैसे कहूँ मैं सबसे दिल की बात,
शर्म-हया मानो सब मेरे पास,
नज़रें उठती बड़ी हिम्मत से,
शर्म से फिर झुक जाती हैं ।
पलकें जो बंद होती तुम ही
नजर आ रहे हो,
है शाम जो ढ़लती दिल को
तरसा रहे हो,
सपनों में भी है तुम्हारा बसेरा,
लगता है जैसे कुछ रहा न मेरा ।
कहीं मोहब्बत एक तरफा तो नहीं,
वफ़ा ही मिले यह जरूरी तो नहीं,
फिर क्यों इतना तुम सता रहे हो ?
याद मुझे हर बार आ रहे हो ।
आँख मिचौली क्यों खेल रहे हो ?
मुझसे कुछ क्यों नहीं बोल रहे हो ?
अजीब-से रिश्ते में बाँध रहे हो !
लगता है राहों से मुझे भटका रहे हो ।