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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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आम

आम

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यह दुनिया आम तुझ को

हमेशा ही दबाती है

और ख़ास के छिलके को

भी सलाम ठोक जाती है

मेहनत तो आम तू बहुत

ख़ूब करता आया है

पर ये दुनिया तेरी मेहनत

के जूस को पी जाती है।


तू मिट्टी है, वो सोना है ऐसा

वो खास कहते है,

पर तेरी मिट्टी से बने आम को

ये दुनिया साबुत ही खा जाती है।

तेरा बाहर का चोला गन्दा है

उनका अंदर का मन गन्दा है,

फिर भी यह दुनिया तेरा ही

नाम लेकर बेहया कह जाती है


वो खास है, उनसे आती नहीं

बास है,

तू आम है, करता नहीं कुछ

काम है,

तेरा काम गन्दा है, उनके काम

से इत्र की खुश्बू आती है।

तू आम है, आम ही रहेगा,

पर याद रखना तेरी आम बात ही,

ख़ास के शीशमहल पर पत्थर

फेंक जाती है।



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