आलिंगन !
आलिंगन !




मैं जब होती हूँ
तुम्हारे आलिंगन में
तो ये पुरवाई हवा
भी कहाँ सिर्फ हवा
रहती है !
वो तो जैसे मेरी
साँस सी बन मेरी
रगों में बहने लगती है !
मुझे तो जैसे हर एक
गुलों में एक तुम्हारा ही
चेहरा दिखने लगता है !
मन उड़ता है
कुछ यूँ ख़ुश हो कर
जैसे इच्छाओं ने
पर लगा लिए हो !
और रूह तो मानो
स्वच्छंद तितली का
रूप धर उड़ने लगती है !
मैं जब होती हूँ
तम्हारे आलिंगन में
तो ये पुरवाई हवा
भी कहाँ सिर्फ हवा
रहती है !