आखिर कब तक
आखिर कब तक
आखिर कब तक बचाता खुदा आपको।
एक दिन लगनी ही थी बद्दुआ आपको।
जुबां से गिराते रहे आप शोले।
थे मजहबी नारों में नेता जी बोले।
उठाओ बंदूकें और भून डालो सालों को।
तिलक, जनेऊ व तलवार वालों को।
आग झुग्गी में लगती रही शाम को।
जाने कैसे लगा है धुआँ आपको।
हमने देखे न भूले हैं मंजर कई।
लाश खेतों में थी वो दिगम्बर कई।
तब मरती रहीं गायें गौशालों में।
आप जलाते रहे दीया उजालों में।