आज सृजन करने का दिन है
आज सृजन करने का दिन है
प्रातः से ही आतुर मन मेरा ,
हर क्षण व्याकुलता बढ़ती जाए,
ज्यों काले काले मेघ घिरे हौं,
बस बूंदें गिरने को अकुलायें,
कलम उठी है कुछ लिखने को,
भाव बदलते क्यों पल छिन हैं,
आज सृजन करने का दिन है।।
अपने मन की अभिव्यक्ति को,
अब शब्दों के पंख लगा कर,
अलंकार, मात्रा,रस जो शोभे,
वैसे कितने ही वस्त्र पहनाकर,
आज कल्पना के नभ में फिर,
अनुभव विहग नीड़ रहे गिन हैं,
आज सृजन करने का दिन है।।
कुछ अपने मन की कुछ उनकी,
कुछ यथार्थ की और कुछ धुन की,
उच्छ्रंखल तो कुछ बंधी हुई,
कुछ रोमांचक तो कुछ सधी हुई,
तुकांत,अतुकांत, छाया या प्रगतिवादी,
निकले जो भी वो कविता लेकिन है,
आज सृजन करने का दिन है।।
इस जीवन में हौं सब रस संचित,
सब स्वप्न हौं पूरे ,ना कोई वंचित,
मन का चाहा सबकुछ मिल जाता,
ये इस जग में ना हरदम हो पाता,
थी जो भी टीस रही जीवन में,
कवि हृदय की आशा से मुमकिन है,
आज सृजन करने का दिन है।।
कलम उठी हैं अभिव्यक्ति को,
हर बेजुबान को दे शक्ति जो,
नृप और प्रजा में भेद न माने,
सबको छूती ये जाने अनजाने,
जो भी दिल में था सब कह डाला,
अब मन ना मेरा आज मलिन है,
आज सृजन करने का दिन है।।