आज फिर निकला है बैरी चाँद
आज फिर निकला है बैरी चाँद
आज फिर निकला है बैरी चाँद
अधरों पर लिए मुस्कान
आज फिर निकला है बैरी चाँद।
उजली शीतल चाँदनी में नहाया
दिनों के फेर से कभी नहीं घबराया।
आधा-अधूरा, आधे का आधा आकार
पूरा गोल-गोल गोलाकार।
खिड़की के झरोखे से
देख-देख कर मुस्कराया
छिटका चाँदनी इतराया।
शर्म नहीं आती
झाँक रहे हो आर-पार।
आप ही तो करवाचौथ पर
करने आते हो मेरा दीदार।
ईद के चाँद हो
निकल जाओगे बादलों के पार
अंधेरे में आते हो
अंधेरे में खो जाते हो।
तारों की बारात में झिलमिलाता हो
घरों को अपनी रोशनी से जगमगाता हो।
बादलों का सीना फाड़ इतराते हो
आँधी-तूफान में भी अँखियाँ झिलमिलाते हो।
जहाज़ी बेड़े पार लगाते हो
पूर्णिमा में धरा पर उतर आते हो।
चंचल चिंतवन हो
सुंदरता की मूर्त हो
आधे आकार में भी पूर्ण हो
दागों में भी सम्पूर्ण हो ।
अधरों पर लिए मुस्कान
आज फिर निकला है बैरी चाँद।